Monday, 30 June 2014

4) ये बरकत वाला साथ था-आभाव वाला नहीं

सूरज की सुनहरी कोपलें आती हैं जैसे चेहरे पर- जैसे आती है बरसात की खुशबु वैसा-सा प्यार हुआ कथा को भाव से।

ये बरकत वाला साथ था-आभाव वाला नहीं। ना तो इसमें सवाल थे ना ही कोई शिकवा था।

ना तो कोई सवाल था-ना मलाल था कोई।

कोई आधुनिक डर भी ना था दोनों को। ज़ात तो थी नहीं... बिरादरी के सम्मान वाला पंगा ही न था।हाँ एक दिक्कत थी बस दोनों क साथ। कुछ भी कहना होता तो दोनों एक दूसरे को भरपूर बोलने-बांटने देते।

सुनने वाले असमंजस सी स्थिति में रहते थे।

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