कहाँ हो तुम इतने दिनों से! मैं कब से सोच रहा हूँ तुम्हे,ं और सोचते-सोचते कई बार दूर जाकर वापस लौटा हूँ।
ज़रूरी नहीं है इतने दिन बात न करना किसी से।
और हाँ, तुम तो मेरी ही तलाश में गयीं थी ना- अब आओ बैठो- तीन महीने से मैं भी चुप बैठा हूँ जग में आकर।
आ आ - ई ई - ऊ उ- कुछ बोलता रहता हूँ
पर अभी शब्दों को आकर नहीं देता हूँ। सब चाव से बुलाते हैं। और तुम सुनाओ अब मुझे अपने साथ रखोगी या नहीं.. अरे मज़ाक कर रहा हूँ। मैं भाव हूँ और मुझे तो कथा के साथ ही रहना है।
मैं कथा की कहानी कहने चला हूँ। कथा को हम सभी जानते हैं। हम सब में एक कथा है- मुझमें और आप में - हर उस मन में कथा का ठहराव है जिसे आस पास का कुछ महसूस होता है। कथा प्रतीक है- पर आप इसे एपिसोड्स में नहीं बाँध सकते। अभी तो आईडिया ही आया है- जब कुछ कहने लायक होगा तो छप जाएगा फेसबुक पर भी। अभी मन के काग़ज़ों पे ही छींटें पड़ रहे हैं। आओ कहानी कहें।
Saturday, 29 November 2014
कथा भाव (04)
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